Ranbhumi Mahabharat

एक दृश्य हम देख न पाये कुरुक्षेत्र की भूमि पे, 

थे अपने अपने भाई खड़े उस अटल पंथ रन भूमि पे, 

थे एक से दुरंधर एक पड़े उस अटल पंथ रणभूमि पे, 

परिवार के भी ठुकडे हुएँ उस महा कुरुक्षेत्र की भूमि पे, 

टुकड़े परिवार के कुछ ऐसे हुएँ जहा भाई भाई का नाता था, 

एक हिस्से मे प्यार दूजे मे तकरार या समय का गाथा था, 

थे तीनो पक्षों मे प्रबल था कौन इसका तुम सब ज्ञात ना करो, 

भाई पे भाई टूटे थे समय की शक्ति को आघात ना करो,

विचलित था मन पार्थ का अपनो को सामने देख  के अस्त्र सस्त्र सब सुन उस मौन समय के वाणी पर, 

कुपित मन था पार्थ का और इच्छा शक्ति मर चुकी
परिवार के प्रेम मे निर्बल होके हार जीत भी मर गई, 

लीलाधर को ज्ञात हुआ समय का पहिया छुट रहा
परिवार आदि के प्रेम मे पड़ाव का भी धीरज टूट रहा, 

उठो पार्थ और मोह त्यागो इस रणभूमि का उद्धार करो स्त्री सम्मान की रक्षा हेतु नवीन इतिहास को अवान करो, 

समझते हो जिनको तुम अपना है सभी ये मोह माया एक पंछी की भाती ये आत्मा पेड़ पेड़ बशेरा
लगाते हैं मुझे जन्म लेकर ये सब पुनः मुझमे ही
मिल जाते है, 

देखो मेरा ये विकट रूप और इस रणभूमि का समान करो, 

सस्त्र उठाओ हे अर्जुन इन दुस्टो का नास करो
सस्त्र उठाओ हे अर्जुन इन दुस्टो का नास करो।। 



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